आपातकाल दिवस की 45वीं वर्षगांठ पर 94 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं आपातकाल के बंदी, वयोवृद्ध समाजवादी नेता जमुना प्रसाद बोस को गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने माला पहनाकर अभिनन्दन किया
स्टेट हेड शमीम की रिपोर्ट
बाराबंकी। आपातकाल की घटना जिनसे लोकतंत्र को झकझोर दिया। जिसका काला अध्याय इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ गया। जिन्होंने भी आपातकाल को भुगता है वह और उनके परिवार के सदस्य आज भी यह शब्द सुनकर सहम जाते है। उनकी आँखों के सामने आज भी वह दृश्य आ जाता है और लगने लगता है कि सब ओर अंधेरा ही अंधेरा है, कहीं से कोई रोशनी की किरण नहीं दिखाई देती एक अनिश्चितता लगती है। क्या होगा? कैसे होगा? कोई रास्ता निकलेगा क्या? एक साथ कई सवाल खड़े हो जाते हैं?
यह बात आपातकाल दिवस की 45वीं वर्षगांठ पर 94 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं आपातकाल के बंदी, वयोवृद्ध समाजवादी नेता जमुना प्रसाद बोस ने कही। इस मौके पर गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने जमुना प्रसाद बोस को माला पहनाकर उनका अभिनन्दन किया और उनका कुशल क्षेम जाना।
श्री बोस ने बताया कि 1 जुलाई 1975 को गिरफ्तारी हुई और आपातकाल की समाप्ति पर छोड़ा गया। मीसा के तहत पूरे 19 माह जेल में गुजारे। देश स्वतंत्र होने के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा आपातकाल के माध्यम से देशवासियों की संवैधानिक आजादी को नष्ट करने का प्रयास किया गया। आपातकाल के समय केवल सत्याग्रह करने वाले ही नहीं उनकी सहायता करने वालों पर भी पाबंदी थी। उनको भी जेल में डाल दिया जाता था। चारों ओर भय का वातावरण बना दिया गया था कि लोग कुछ भी करने से पहले कई बार सोचते थे।
आपातकाल में 14 माह जेल में रहे लोकतंत्र रक्षक सेनानी राजनाथ शर्मा ने बताया कि आपातकाल की त्रासदी शब्दों में बयान नहीं की जा सकती है। जिन्होंने आपातकाल नहीं देखा वास्तव में उनके लिए आपातकाल की कल्पना को करना भी कठिन है। असत्य, अहंकार और अराजकता को मिला आपातकाल शब्द की व्याख्या की जा सकती है। आपातकाल असत्य की प्रतिमूर्ति थी, आपातकाल अराजकता की प्रतिमूर्ति थी, आपातकाल अहंकार की प्रतिमूर्ति थी। इन शब्दों से हम समझ सकते हैं वातावरण कैसा रहा होगा।
श्री शर्मा ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए समाजवादियों ने अहम भूमिका निभाई। इस दौरान लाखों की संख्या में गिरफ्तारियां हुई। मीसा और डीआईआर के तहत लोगों को बंदी बनाया गया। आपातकाल के भय के बाद भी समाजवादियों ने हिम्मत नही हारी। सरकार को शायद अनुमान नहीं था कि सत्याग्रह करके भी लाखों लोग जेल जा सकते हैं। सवा लाख से अधिक लोग स्वयं जेल गए। लाखों लोग ऐसे थे जिन्होंने सत्याग्रह किया और उनको पुलिस नहीं पकड़ पायी, जेल में जगह नहीं थी, ऐसा जबरदस्त आंदोलन खड़ा हुआ कि उसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र विजयी हुआ, लोकतंत्र की रक्षा हुई।