मंडल ब्यूरो सुमित अवस्थी अयोध्या
जनपद बाराबंकी निन्दूरा, सुविख्यात अवधी कवि सुन्दर लाल ‘सुन्दर’ जी की जन्म जयंती पर विशेष आयोजन, संस्कार भारती के तत्वावधान में साहित्य पथ मंच, निन्दूरा, बाराबंकी द्वारा क्षेत्र के विख्यात कवि श्री सुन्दर लाल गुप्त ”सुन्दर” जी के 77 वें जन्मदिवस के अवसर पर ई-काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश के कुछ ख्याति प्राप्त साहित्यकारों एंव कुछ युवा रचनाकारों नें प्रतिभाग किया। वरिष्ठ आशुकवि श्री कमलेश मौर्य ‘मृदु’ जी की अध्यक्षता एंव सुप्रसिद्ध गीतकार श्री संजय सांवरा जी के संचालन में उपस्थित कवियों ने अपनी कविताओं से वातावरण को काव्यमय कर दिया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सीतापुर से कवियत्री सुश्री लक्ष्मी शुक्ला जी की वाणी वन्दना- “अक्षर-अक्षर तुमसे उपजे तुमसे उपजे गीत गजल, वीणापाणि कृपा कर मेरी वाणी कर दो सहज सरल” से हुआ। इसके उपरान्त संजय सांवरा ने अपने मनमोहक संचालन से कवियों को काव्यपाठ करने के लिए मंच पर आमंत्रित करने का सिलसिला प्रारम्भ किया और इस क्रम में सबसे पहले मंच पर लखनऊ से उपस्थित एस. पी. पाण्डेय जी को आमंत्रित किया जिन्होंने आदरणीय सुंदर लाल जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए एक अवधी गीत पढ़ा- “सावन के आवन से धरती हरियाय रही। काली बदरिया अंगनवा मा छाय रही। बैरी बलम जिनके घर का न आये, बिरहन वहै खूब मनमा गरियाय रही।” और इसी क्रम में साहित्य पथ मंच के संस्थापक एंव सुंदर लाल जी के काफी निकट रहे युवा कवि भानु प्रताप मौर्य ‘अंश’ ने कुछ इसी प्रकार से ‘सुन्दर’ जो को याद किया- ” ‘सुंदर’ सांवरे थे मृदु हृदय नवनीत जैसा था। सरल व्यक्तित्व अद्भुत नव मधुर संगीत जैसा था। अधर पर ले सरल मुस्कान मिलते थे सदा सबसे, कुशल व्यवहार यह उनका नये मनमीत जैसा था।” और इसी क्रम में मंच पर उपस्थित सीतापुर की धरती से श्रेष्ठ वक्ता आचार्य विजेन्द्र सिंह ‘उद्दण्ड’ जी ने सुंदर जी के सम्मान में एक अवधी लोकगीत- “लौटि आवय बालपन यू मनावै मनवा” पढ़ा। कार्यक्रम को गरिमा प्रदान करने वालें आदरणीय अध्यक्ष महोदय के साथ मंच पर सीतापुर से ही उपस्थित ऐसी दो विभूतियां जिन्होंने आदरणीय सुंदर लाल जी के साथ काव्य मंचों पर अपने जीवन के यादगार लगभग 20 वर्ष बिताये उनमें से एक धनश्याम शर्मा जी, महामंत्री संस्कार भारती बिसवां, ने सुंदर लाल जी का गुणगान करते हुए पढ़ा-
“सच्चे अर्थों में थे दादा सुंदर सरस्वती के लाल। मातु शारदे का शुचि मंदिर तुमसे हुआ निहाल।” सुंदर जी के दूसरे सबसे घनिष्ट रहे बिसवां सीतापुर से आनन्द खत्री जी ने भी सुंदर लाल जी के सम्मान में एक दोहा-
“काव्य जगत के श्रेष्ठ कवि कण्ठ मधुर सुरताल। दादा सुंदर लाल थे वीणापाणि के लाल।” और एक गीत- “करना है सत्संग तो कुछ मौन धरना चाहिए” पढ़ा और इसी क्रम में मंच पर लखनऊ से उपस्थित आदरणीया मंजरी भटनागर जी ने स्त्री विमर्श पर एक कविता- “नारी है तू शक्ति है ईश्वर की तुझपर आशक्ति है” पढ़ी, बाराबंकी से मंच पर उपस्थित वरिष्ठ अवधी गीतकार अजय ओझा ‘चंदन’ जी ने अपने ओजस्वी सम्बोधन से मंच से को ऊर्जा प्रदान करते हुए एक अवधी मुक्तक-
“शब्द आखरु कै सम्बंध का जानी हम। काव्य के फूल कै गन्ध का जानी हम। लक्क्षणा व्यंजना कै न हमका पता, रस अलंकार औ छन्द का जानी हम।” पढ़ा जिसको सभी ने खूब सराहा वरिष्ठ गीतकार श्री सुरेश वैरय जी ने पुष्प को समर्पित करते हुए एक अद्भुत गीत- “पुष्प की पंखुड़ी खिलखिलाकर हंसी, जब भ्रमर ने कली के अधर छू लिया।” पढ़ा जिस पर सारा मंच उनके स्वर के साथ झूम उठा। अब पीलीभीत के युवा कवि अमित चौहान ने चार पंक्तियां- “तुम क्या जानों ये जग को क्या सरमाया देते हैं।
बच्चों को मुस्कान, बड़ों को ममता माया देते हैं। इनसे मिलना ये तन को शीतल कर देंगे, ये वो बरगद हैं जो हम सब को छाया देते हैं।” पढ़कर काव्यपाठ के लिए कार्यक्रम के अध्यक्ष कमलेश मौर्य ‘मृदु’ को आमंत्रित किया, जिन्होंने सुंदर लाल जी के कृतित्व, व्यक्तित्व एवं कवि मंचों की उपलब्धियों को समर्पित करते हुए एक मुक्तक पढ़ा- “थे गीतों और गजलों, मुक्तकों की खान सुंदर जी। बहुत सीधे सरल सच्चे नेक इंसान सुंदर जी। जहाँ जिस मंच पर जाते थे उसकी शान बनते थे, थे वो साहित्य पथ की ‘मृदु’ अलग पहचान सुंदर जी।” इसके अतिरिक्त युवा कवि रवि कुमार मौर्य व हास्य कवि अमित सिह चौहान ने काव्यपाठ कर गोष्ठी को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। कार्यक्रम का संयोजन कर रहे ‘काव्यांजलि कुसुम मासिक ई-पत्रिका बाराबंकी’ के सम्पादक कवि भानु प्रताप मौर्य ‘अंश’ ने सभी का स्वागत किया तथा आभार प्रकट किया।
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