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लखनऊ

साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान “लक्ष्य” के तत्वावधान में एक आनलाइन कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन

लखनऊ दिनांक 29 जून 2021,आज दिनांक 29 जून 2021 को साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थान “लक्ष्य” के तत्वावधान में एक आनलाइन कवि सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय प्रसून जी इस कार्यक्रम के अध्यक्ष, वरिष्ठ गज़लकार कुॅंवर कुसुमेश जी मुख्य अतिथि तथा वरिष्ठ कवि गीतकार इ० सुनील कुमार वाजपेयी जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन संस्था के उपाध्यक्ष मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ने किया। कवि सम्मेलन की शुरुआत वरिष्ठ कवि शायर आहत लखनवी जी द्वारा सुमधुर स्वरों में निम्नलिखित वाणी वंदना से हुई :-

है तुम्हें शत शत नमन माँ शारदे माँ शारदे
द्वेष से कलुषित हृदय को तार दे माँ शारदे
हो अगर सुख शांति जग में प्रीत का वंदन लिखूँ
मैं धरा के भाल पर सद्भाव का चंदन लिखूं
माँ जगत को प्रेम और सद्भाव का उपहार दे
है तुम्हें शत शत नमन माँ शारदे माँ शारदें

इसके उपरान्त चिर परिचित कवयित्री अनुजा मनु ने बेहतरीन गीत प्रस्तुत करते हुए कार्यक्रम को गति प्रदान किया और खूब प्रशंसा बटोरी :-

हृदय पृष्ठ पर मैने तुमको जब अपना मनमीत लिखा।
साँसों की सरगम को मैने मधुर प्रणय संगीत लिखा।।

तत्पश्चात कानपुर से सुप्रसिद्ध युवा कवि प्रशांत अवस्थी जी ने नेटवर्क की समस्यायों से जूझते हुए अपनी निम्नलिखित सुन्दर सा गीत प्रस्तुत कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया :-

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अखिल ब्रह्माण्ड के नायक, सहारे को जरा आजा
बनाने भक्त की बिगड़ी, प्रभू रघुवर जरा आजा

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रायबरेली से वीर रस के जाने माने कवि *दिलीप सिंह परमार* जी की निम्नलिखित रचना ने चेतना का नया संचार किया :-

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काजल की कोठरी से आखिर पाक साफ कौन निकला है।
न्याय के अंधे दरबारों से आखिर बेगुनाह कौन निकला है।

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इसके बाद बीच बीच में नेटवर्क की बाधाओं को पार करते हुए भी सुप्रसिद्ध कवयित्री भारती पायल जी ने अपनी इस रचना से खूब वाहवाही बटोरी :-

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चंचल-चंचल मेरी खुशियां, मुझे सुहाया सावन।
रिमझिम-सी बूंदें है कोमल, मन को भाया सावन।
खूब मचाता पल-पल हलचल, लगता ये मनमोहक,
झूला झूलें मिलजुल हम-सब, देखो आया सावन।

उसके उपरान्त साहित्य के प्रति सदा समर्पित सुप्रसिद्ध वरिष्ठ कवि *केवल प्रसाद सत्यम* जी ने एक गीतिका एवं एक से बढ़कर एक दोहे प्रस्तुत किये :-

प्रकृति सयानी प्रेम वश, भरकर लायी थाल।
ढका मेघ रूमाल से, लगे न नजर अकाल।।

लगा ढीठ वर्षा हवा, मिलीं गले भरपूर।
काले मेघा गरजते, देख दामिनी क्रूर।।

संचालक मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’ ‘जी ने अपनी बारी आने पर कुछ व्यंग्यात्मक दोहे प्रस्तुत किये :-

आता जाता कुछ नहीं, बनते ठेकेदार।
इनसे तो अच्छे मियां, अपने चौकीदार।।

वाणी वंदना कर चुके जाने माने वरिष्ठ कवि शायर आहत लखनवी जी ने अपने बेहतरीन तरन्नुम में निम्नलिखित ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए ढेर सारी तालियां व दाद बटोरीं :-

तेरे निज़ाम पे उँगली उठा नहीं सकते कि सुब्हो-शाम पे उँगली उठा नहीं सकते।
वचन पिता का निभाने को छोड़ दे सब कुछ,
हम ऐसे राम पे उँगली उठा नहीं सकते।
जहाँ पे बेचना ख़ुद को हो एक मजबूरी।
वहाँ पे दाम पे उँगली उठा नहीं सकते।

तत्पश्चात कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि गीतकार सुनील कुमार वाजपेयी जी ने अपना निम्नलिखित गीत पढ़कर कार्यक्रम को चरम पर पहुंचा दिया :-

आ गये हैं मेघ नभ में फिर उमड़कर,
फिर मुदित होगी धरा सजकर सँवरकर l

मुख्य अतिथि प्रख्यात वरिष्ठ कवि गज़लकार कुँवर कुसुमेश जी ने बेहतरीन तरन्नुम में एक बेहद उम्दा ग़ज़ल के साथ साथ खूबसूरत बेहतरीन सन्देशात्मक दोहे भी प्रस्तुत किये :-

उस रावण को बेवजह, कोस रहे हैं आप।
अब के रावण लग रहे, उस रावण के बाप।।

अन्त में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय प्रसून जी ने आशीर्वचन के रूप में बहुत सुन्दर गीत और मुक्तक से कवि सम्मेलन को शिखरता प्रदान की :-

हाट में बिक जायेंगी वह मीन लगता है,
सोच से बेहद मलिन मन हीन लगता है।
स्वाभिमानी यदि नहीं वह लेखनी तोड़े,
याचना करता हुआ कवि दीन लगता है।

तत्पश्चात दर्शक दीर्घा से झांक रहे तथा कवियों व कवयित्रियों के काव्यपाठ का आनन्द ले रहे हास्य कवि एवं लक्ष्य संस्था के सचिव प्रवीण कुमार शुक्ला ‘गोबर गणेश’जी ने सभी अतिथियों कवियों/कवयित्रियों का औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित करते हुए इस कवि सम्मेलन के समापन की घोषणा की।

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