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राष्ट्रपति ने दिल्ली में भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का शिलान्यास किया राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने आज (03 मई 2022) दिल्ली में भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का शिलान्यास किया।

शिवा वर्मा के साथ समित अवस्थी की रिपोर्ट

राष्ट्रपति ने दिल्ली में भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का शिलान्यास किया

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने आज (03 मई 2022) दिल्ली में भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल का शिलान्यास किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि जैन परम्परा में सेवा को प्राथमिकता दी गई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2023 तक 250 बिस्तरों वाला एक अत्याधुनिक भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल बनकर तैयार हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में समाज के सभी वर्गों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं किफायती दरों पर और गरीबों को निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि महामारी के दौरान इस अस्पताल ने कोविड केयर अस्पताल के रूप में भी अपनी सेवाएं प्रदान की। उन्होंने लोगों को आगाह किया कि कोविड अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। उन्होंने सभी नागरिकों से सतर्क रहने और सरकार के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करने की अपील की।
फेस मास्क के महत्व के बारे में बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हम जानते हैं कि आधुनिक इतिहास में सर्जिकल मास्क लगाने की शुरुआत 1897 में की गई जब शल्य चिकित्सकों ने ऑपरेशन के दौरान बैक्टीरिया से स्वयं को बचाने के लिए मास्क का उपयोग करना शुरू किया। लेकिन जैन संतों ने सदियों पहले ही मास्क के महत्व को समझ लिया था। अपने मुंह और नाक को ढककर वे न सिर्फ जीव-हिंसा से बचते थे बल्कि वे अपने शरीर में सूक्ष्म जीवों के प्रवेश को रोकने में भी सक्षम थे। कोविड-19 महामारी के दौरान, मास्क का उपयोग वायरस से सुरक्षा के प्रभावी उपाय के रूप में किया गया। उन्होंने कहा कि जैन संतों ने भी शारीरिक व्यायाम के महत्व को रेखांकित करते हुए पैदल चलने पर बहुत जोर दिया। उन्होंने भरोसा व्यक्त किया कि वैज्ञानिक परम्पराओं के आधार पर मानव समाज को स्वस्थ जीवन की जो दिशा संतों ने दिखाई है उस पर चलने का प्रयास इस अस्पताल द्वारा किया जाएगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि जैन परम्परा हमें संतुलित और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैलीे अपनाना सिखाती है। मौजूदा समय में रहन-सहन और खान-पान प्रकृति के अनुकूल नहीं है। हम जानते हैं कि जैन संत और उनके अनुशासित अनुयायी अपना भोजन सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही करते हैं। सूर्य की दैनिक गति के अनुसार जीवनशैली को अपनाना स्वस्थ रहने का एक आसान तरीका है। जैन संतों की आदर्श जीवनशैली से हमें यही शिक्षा मिलती है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों के साथ ऐसी वैज्ञानिक परम्पराओं का समन्वय स्वस्थ जीवन के लिए सहायक होगा।

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Soumya Verma

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