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महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों से कुछ लोग हमेशा जानबूझकर असहमत रहे, मगर बापू के समर्थन में खड़े होने वाली हजारों लाखों की भीड़ ने कभी उन्हें भूलाया नहीं।

गांधी जी कहते थे कि देश को मरने मारने वाले लोगों की नहीं बल्कि जीने वाले लोगों की आवष्यकता है जो देश के लिए जी सके।

रिपोर्टः-शिवा वर्मा।

बाराबंकी। महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों से कुछ लोग हमेशा जानबूझकर असहमत रहे, मगर बापू के समर्थन में खड़े होने वाली हजारों लाखों की भीड़ ने कभी उन्हें भूलाया नहीं। पर आज उनके लिए मन में श्रद्धा का भाव रखने वालों को उंगलियों पर गिना जा सकता है। गांधी जी कहते थे कि देश को मरने मारने वाले लोगों की नहीं बल्कि जीने वाले लोगों की आवष्यकता है। जो देश के लिए जी सके।

यह बात गांधी भवन में गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा आयोजित गांधी जयन्ती सप्ताह के उद्घाटन के मौके पर गांधी शान्ति प्रतिष्ठान से जुड़े रहे प्रख्यात गांधीवादी रमेश शर्मा ने कही। कार्यक्रम की शरूआत मुख्य अतिथि गांधीवादी रमेश शर्मा, भारतीय विधि संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व रजिस्ट्रार डा. के.एस. भाटी, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एस.एस नेहरा, भारतीय न्यायिक कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय संरक्षक डा. शकील मोईन ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर मार्ल्यापण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इस मौके एन.ए मीडिया के निदेशक जुबैर अहमद, द टी फ्लेवर के निदेशक नीरज उपाध्याय और शाहनवाज़ अहमद का स्वागत हुआ। बतौर मुख्य अतिथि रमेश शर्मा ने सभा में उपस्थित बच्चों को महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बच्चों के लिए गीत और खेल माध्यम से भी अपनी बात रखी।

 

भारतीय विधि संस्थान दिल्ली के पूर्व रजिस्ट्रार डा. के.एस भाटी ने कहा कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमें आजादी मिली। लेकिन आजादी के मायने बदल गए। हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में दिल्ली के लाल किले पर हजारों सैनिकों के पहरे में आजादी का झंडा फहराया जा रहा है। जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

 

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सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता एस.एस नेहरा ने कहा कि महात्मा गांधी ने देश की युवा पीढी को सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का मार्ग दिखाया। जिसे आज आत्मसात करने की आवश्यकता है।

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भारतीय न्यायिक कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय संरक्षक डा. शकील मोईन ने कहा कि महात्मा गांधी 1915 में दक्षिणी अफ्रीका से वापस आते हैं। 1917 में चंपारन के हीरो बन कर निकलते हैं। 1925 तक आते आते अंग्रेजी हुकूमत द्वारा की जा रही लूट के विरोध का खाका बुनना शुरू करते हैं। खादी, चरखा 1934 तक आते आते आंदोलन का अंग बन जाता है।

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गांधीवादी राजनाथ शर्मा ने कहा कि महात्मा गांधी ने मुल्क को आजादी दिलाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। उन्हें एक ऐसे योद्धा के रूप में जाना जाता है जिसने शस्त्र उठाए बिना ही दुश्मन को मैदान छोडने पर मजबूर कर दिया। उनके अहिंसक प्रयासों को भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में सराहा जाता है।

इस मौके पर जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष बृजेश दीक्षित, हाजी मो. उमेर अहमद किदवई, सिटी इं कालेज के प्रधानाचार्य विजय प्रताप सिंह, पर्यावरणविद् हाजी सलाउद्दीन किदवई, विनय कुमार सिंह, जुबैर अहमद, पाटेश्वरी प्रसाद, मृत्युंजय शर्मा, सत्यवान वर्मा, साकेत मौर्या, हुमायूं नईम खान, अनवर महबूब किदवई, एहतिशाम खान, अजीज अहमद, अब्दुल रहमान लल्लू, अनुपम सिंह राठौर, मनीष सिंह, नीरज दूबे, रंजय षर्मा आदि लोग मौजूद रहे।

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