समित अवस्थी की रिपोर्ट
जनपद बाराबंकी। मधु लिमये ईमानदारी और नैतिक मूल्यों में गहरी आस्था रखते थे। यह विशेषता उन्हें अपने समकालीन राजनेताओं की जमात से एकदम अलग और बहुत ऊँचे स्थान पर खड़ा करती थी। आज जब सड़क गूंगी, संसद नाकारा, सरकार आवारा होकर पूरी तरह जनद्रोही हो चुकी है, ऐसे में मधु लिमये बहुत याद आते हैं।
यह बात गांधी भवन में समाजवादी चिन्तक स्व. मधु लिमये की जन्मशती पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे गांधीवादी राजनाथ शर्मा ने कही। श्री शर्मा बताते है कि यह साल मधु लिमये की जन्मशती का है इसलिए प्रत्येक माह की पहली तिथि को मधु लिमये की स्मृति में समारोह या गोष्ठी आयोजित करने का निर्णय स्व. मधुलिमये जन्मशती समारोह समिति ने लिया है। यह तीसरे माह का पांचवा आयोजन है। इससे पहले बाराबंकी, ग्वालियर, दिल्ली और लखनऊ में आयोजित किया जा चुका है।
पूर्व ब्लाक प्रमुख एवं सपा नेता मौलाना असलम ने कहा कि मधु लिमये के आजादी के आंदोलन, गोवा मुक्ति आंदोलन, समाजवादी आंदोलन के योगदान को छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन सरकार शिक्षा का भगवाकरण कर रही है। उन्होंने समाजवादी आंदोलन के विभिन्न नेताओं का जिक्र करते हुए कहा कि युवाओं को आगे आकर संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।
प्रसपा नेता धनंजय शर्मा ने कहा कि मधु लिमये संसदीय परंपराओं और नियमों के गहरे जानकार थे। उनकी सादगी और अध्ययनशीलता ने सभी को प्रभावित किया। वह संघर्ष, चिन्तन और बेबाकी के धनी व्यक्ति थे। मधु लिमये को संसदीय नियमों और परंपराओं के ज्ञान का चौंपियन कहा जाता था।
संगोष्ठी का संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया। इस मौके पर उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सरदार आलोक सिंह, विनय कुमार सिंह, सपा नेता दानिश सिद्दीकी, मृत्युंजय शर्मा, सत्यवान वर्मा, पवन शर्मा, आजम जैदी, विजय कुमार सिंह सहित कई लोग मौजूद रहे।