दस लक्षण पर्व विशेष- नवा दिन ष्उत्तम आकिंचन्य धर्मष् आत्मा ही अपनी है।
रिपोर्ट :- शिवा वर्मा।
बाराबंकी। ष्मैंष् और ष्मेरेष् का त्याग ही उत्तम आकिंचन धर्म है आकिंचन्य का अर्थ है मेरा कुछ भी नहीं है धन दौलत, घर द्वार, बंधु बांधव यहां तक कि शरीर भी मेरा नहीं है इस प्रकार का अनासक्ति भाव उत्पन्न होना आकिंचन्य धर्म है महाराज वि गुण सागर जी के सानिध्य में हो रहे दसलक्षण धर्म पर्व पर वह बता रहे थे कि ‘‘ना तेरा है ना मेरा है यह चिडि़या रैन बसेरा है’’ आत्मा के सिवाय मेरा कुछ भी नहीं सांसे भी नहीं इसलिए परिग्रह का त्याग करना चाहिए। सांसारिक वस्तुओं के साथ ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरे पन’’ का संबंध भी विसर्जित कर देना और निज शुद्ध आत्मा ही एकमात्र मेरा है।ऐसे गहन आत्मानुभूति का नाम ही धर्म है। मैं और मेरे मन का भाव संसार भ्रमण का कारण है।
प्रातः काल की बेला में भगवान संभवनाथ का पंचामृत अभिषेक हुआ जिस का सौभाग्य अंकुर जैन को मिला। इसमें अभिषेक जैन, मृदुल जैन, सुकुमाल, सोनू ,कपिल, जयकुमार जैन आदि रहे।
सांय काल की बेला में महा आरती और मंगलाचरण के बाद डांडिया की प्रतियोगिता महिलाओं के द्वारा हुई। जिसमे 60 महिलाओं ने प्रतिभागिता की। जज के रूप में चरणजीत कौर व श्वेता चतुर्वेदी उपस्थित रही।
डांडिया डेकोरेशन में स्वेच्छा जैन, मधु जैन ,दीपाली जैन प्रथम आई। पेयर डांस में रवीना जैन ,जूही जैन अव्वल रही। सिंगल डांस में आशु जैन, बरखा जैन ,प्रियांशी जैन और मोस्ट सीनियर में शीलू जैन और सेकंड पेयर में काजल, साक्षी प्रथम आई।