डॉ. एस.एन. सुब्बाराव मुल्क में गांधीवादी परम्परा की बुनियाद थे।
रिपोर्ट:- शिवा वर्मा।
बाराबंकी। डॉ. एस.एन. सुब्बाराव मुल्क में गांधीवादी परम्परा की बुनियाद थे। जिनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा, ईमानदारी और कार्य कुशलता नई पीढी के लिए प्रेरणादायी है। सुब्बाराव जी ने अपने प्रयास से चम्बल में गांधी आश्रम बनाया और वहां रहकर गउन्होंने खादी और अहिंसा का सन्देश दिया। उनके ही प्रयास से चम्बल में डाकुओ का सबसे समर्पण सम्भव हो पाया। उन्होंने हज़ारों डाकुओं से हथियार ही नही रखवाए बल्कि उनको चरखा थमाया, उनके परिवारों को आश्रम में रखा, पढ़ाया और मुख्यधारा में लाने का ऐतिहासिक काम किया। उनका 92 वर्ष की उम्र में निधन होना एक युग का अवसान है।
यह बात गांधी भवन में 92 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रख्यात गांधीवादी पद्मश्री डॉ. एस.एन. सुब्बाराव के निधन पर गांधी भवन में आयोजित शोकसभा को सम्बोधित करते हुए गांधी जयन्ती मसारोह ट्रस्ट के अध्यक्ष राजनाथ शर्मा ने कही।
श्री शर्मा ने बताया कि डॉ. एस.एन. सुब्बाराव महज 13 साल की उम्र में आज़ादी के अंतिम लड़ाई से जुड़ गए। उन्होंने 42 केआन्दोलन में दीवारों पर अंग्रेजों भारत छोड़ों लिखकर ब्रिटिश सरकार का विरोध किया और जेल गए। वह महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने वाले गांधीवादी थे। उन्होंने उन्हीं आदर्शो पर चलते हुए देश में अखंडता, सौहार्द, अहिंसा और सद्भावना की मिसाल कायम की। भारत सरकार ने उन्हें को पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।
श्री शर्मा ने बताया कि डॉ. एस.एन. सुब्बाराव ने अपने प्रयास से चम्बल में गांधी आश्रम बनाया। उन्होंने चम्बल में खादी को नई पहचान दी। युवाओं को रोजगार से जोड़ा। चंबल के जौरा मुरैना स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम में उनके पार्थिव शरीर का गुरूवार की दोपहर बाद 4.00 बजे अंतिम संस्कार होगा।
इस मौके पर गांधी भवन में दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत की आत्म शान्ति की प्रार्थना की गई। सभा में प्रमुख रूप से समाजसेवी विनय कुमार सिंह, मृत्युंजय शर्मा, पाटेश्वरी प्रसाद, अशोक शुक्ला, राजा सिंह एडवोकेट, साकेत मौर्या, जमील उररहमान, सत्यवान वर्मा, संतोष शुक्ला, रंजय शर्मा, मनीष सिंह, प्रद्युम्न कुमार सिंह, नीरज दूबे सहित कई लोग मौजूद रहे।