कोविड-19 के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी हटाई गई!
कोविड-19 के इलाज से प्लाज्मा थेरेपी हटाई गई!
रिपोर्ट – शिवा वर्मा सम्पादक
कोरोना संकट के बीच लगातार सरकारी गाइडलाइंस भी बदल रही है। प्लाज्मा थेरेपी को लेकर एक नया संशोधन हुआ है।केंद्र सरकार ने प्लाज्मा थेरेपी को कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया है। जाहिर है कोरोना की पहली लहर में प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना पेशेंट्स के लिए कारगर माना गया था।कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आम लोग, अपने सगे संबंधियों को बचाने के लिए सोशल साइट्स और अस्पतालों के बाहर प्लाज्मा देने के लिए गुहार लगा रहे थे।लेकिन कुछ दिन पहले कोविड पर बनी नेशनल टास्क फोर्स की मीटिंग में चर्चा के दौरान कहा गया कि प्लाज्मा थेरेपी से फायदा नहीं।
हेल्थ मिनिस्ट्री के जॉइंट मॉनिटरिंग ग्रुप ने कोविड 19 मरीजों के मैनेजमेंट के लिए रिवाइज्ड क्लीनिक गाइडलाइन जारी की है। इसमें प्लाज्मा थेरेपी का कोई जिक्र नहीं किया गया है जबकि पहले प्रोटोकॉल में यह शामिल था।कोरोना के गंभीर मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टर्स अब तक प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल कर रहे थे।इस संबंध में AIIMS और ICMR की तरफ से नई गाइडलाइन जारी की गई है।
ICMR ने प्लाज्मा थेरेपी को हटाने के फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग को प्रबंधन दिशा-निर्देश से हटा दिया गया है।
सरकार ने पाया कि कोविड-19 मरीजों के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी गंभीर बीमारी को दूर करने और मौत के मामलों को कम करने में फायदेमंद साबित नहीं हुई।
कोविड-19 के लिए गठित राष्ट्रीय कार्य बल-ICMR की पिछली सप्ताह हुई बैठक के दौरान सभी सदस्य प्लाज्मा थेरेपी को नैदानिक प्रबंधन दिशा-निर्देश से हटाने पर सहमत हुए थे, जिसके बाद सरकार का यह निर्णय सामने आया है।
प्लाज्मा थेरेपी को कोविड-19 मरीजों के उपचार में प्रभावी नहीं पाया गया है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक अधिकारी ने कहा कि कार्यबल ने वयस्क कोविड-19 मरीजों के लिए उपचार संबंधी नैदानिक परामर्श में संशोधन करते हुए प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया।
उल्लेखनीय है कि कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन को देश में कोविड-19 उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग को तर्कहीन और गैर-वैज्ञानिक उपयोग करार देते हुए आगाह किया था।
अभी तक की गाइडलाइन के मुताबिक कोरोना के लक्षण की शुरुआत होने के सात दिन के भीतर प्लाज्मा पद्धति के इस्तेमाल की अनुमति थी।
क्यों हुई हटाने की मांग
ICMR के शीर्ष वैज्ञानिक डॉ० समीरन पांडा ने बताया कि बीजेएम में छपे आंकड़ों में यह सामने आया है कि प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नहीं है।प्लाज्मा थेरेपी महंगी है और इससे पैनिक क्रिएट हो रहा है।इसे लेकर हेल्थकेयर सिस्टम पर बोझ बढ़ा है जबकि इससे मरीजों को मदद नहीं मिलती है। डोनर के प्लाज्मा की गुणवत्ता हर समय सुनिश्चित नहीं होती है। प्लाज्मा की एंटीबॉडीज पर्याप्त संख्या में होनी चाहिए जबकि यह सुनिश्चित नहीं रहता है। इससे पहले जारी दिशा निर्देश के मुताबिक प्रारंभिक मध्यम बीमारी के चरण में यानी लक्षणों की शुरुआत के सात दिनों के भीतर यदि हाई टाइट्रे डोनर प्लाज्मा की उपलब्धता है तो प्लाज्मा थेरेपी के “ऑफ लेबल” उपयोग की अनुमति दी गई थी।
यह फैसला ऐसे में लिया गया है जब कुछ चिकित्सकों और वैज्ञानिकों द्वारा मुख्य विजय राघवन को पत्र लिख इसे हटाने की मांग की थी।
क्या है प्लाजमा थेरेपी
दरअसल, प्लाज्मा थेरेपी में कोविड-19 से ठीक हुए मरीज के खून में मौजूद एंटीबॉडी को गंभीर मरीजों को दिया जाता है। न्यूज रिपोर्ट्स के मुताबिक विशेषज्ञों के अनुसार 11,588 मरीजों पर प्लाजमा थेरेपी के परीक्षण करने के बाद पाया गया कि इससे मरीजों की मौत और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के अनुपात में कोई फर्क नहीं आया है।