के.डी सिंह ‘बाबू‘ ने भारतीय हॉकी की विरासत को एक नया आयाम दिया।
रिपोर्ट :- शिवा वर्मा (संपादक)
बाराबंकी। के.डी सिंह ‘बाबू‘ ने भारतीय हॉकी की विरासत को एक नया आयाम दिया। उन्होनें देश को 1948 और 1952 के ओलंपिक में स्वर्ण जीतने में मदद की। न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान सी.वी वाल्टर ने के.डी सिंह ‘बाबू’ के खेल की तारीफ करते हुए कहा था, ‘बाबू’ज ड्रिब्लिंग इज पोएट्री इन मोशन’ अर्थात बाबू का खेल कविता की तरह प्रवाह मान है।’ यह बात प्रख्यात दास्तानगो (कहानीकार) हिमांशु बाजपेयी ने गांधी भवन में के.डी सिंह ‘बाबू’ की दास्तान के दौरान कही। बुधवार को नगर के गांधी भवन में गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा आयोजित हॉकी के महान खिलाड़ी कुंवर दिग्विजय सिंह ‘बाबू’ की जन्मशती के समापन का आयोजन किया गया।
समारोह के मुख्य अतिथि विधान परिषद सदस्य सी.पी चन्द ने के.डी सिंह ‘बाबू’ के चित्र पर माल्र्यापण किया। तदोपरान्त उन्होंने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का उद्घाटन किया। इसके बाद दास्तानगो (कहानीकार) हिमांशु बाजपेयी ने के.डी सिंह ‘बाबू’ की दास्तान सुनाई। यह बाजपेयी द्वारा एक खिलाड़ी पर पहला वर्णन था, जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, रानी लक्ष्मीबाई और कई अन्य व्यक्तित्वों पर अपनी दास्तानगोई के लिए जाने जाते हैं। उन्होनें बताया कि कुंवर दिग्विजय सिंह का जन्म 2 फरवरी 1922 को बाराबंकी में हुआ था और उन्हें प्यार से ‘बाबू’ कहा जाता था। वह अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली पासिंग क्षमता (ड्रिब्लिंग) के लिए मशहूर थे और कई लोगों द्वारा ध्यानचंद की तुलना में खेल के सबसे महान ड्रिबलर माने जाते हैं।
‘दास्तान केडी सिंह बाबू की’ सुनाते हुए श्री बाजपेयी ने बताया कि साल 1930 में बाराबंकी के देवा मेला में वार्षिक टूर्नामेंट में के.डी सिंह ’बाबू’ ने अपने पहले मैच के साथ शुरुआत की, जब उन्होंने महज़ 13 साल की उम्र में अपनी टीम को जीत दिलाई। बाजपेयी ने यह भी उल्लेख किया कि कैसे खेल प्रशासकों ने केडी सिंह को भारतीय टीम का सर्वश्रेष्ठ और वरिष्ठतम खिलाड़ी होने के बावजूद टीम का कप्तान बनाने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने कभी किसी के खिलाफ शिकायत नहीं की और नई पीढ़ी के हॉकी खिलाड़ियों को कोचिंग देना शुरू कर दिया। इसके चलते उन्होंने 1956 के ओलंपिक में खेलने से इनकार कर दिया, जहां से भारतीय हॉकी का पतन शुरू हुआ। जब भारतीय टीम द्वितीय विश्व युद्ध के कारण दो ओलंपिक में जगह नहीं बना सकी, तो दुनिया भर के हॉकी प्रेमी के.डी सिंह ‘बाबू’ की जादूगरी को देखने से चूक गए।
एक अन्य प्रसंग का जिक्र करते हुए बाजपेयी ने कहा कि के.डी सिंह भारतीय टीम के कोच थे जब उसने 1972 म्यूनिख ओलंपिक में भाग लिया था। मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार भी खेल रहे थे जब टीम ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ थी। हाफ टाइम तक भारतीय 2-0 से आगे चल रहे थे, लेकिन बेहतर अच्छा नहीं खेल रहे थे। कोच ने अशोक कुमार को खराब प्रदर्शन के लिए डांटा। अशोक ने जवाब दिया ‘टीम में हर कोई एक ही तरह से खेल रहा है।’ केडी सिंह ने कहा, ‘आप इस तरह की बात कर रहे हैं…यह अनुशासनहीनता है।‘ अशोक कुमार आंसुओं में थे, लेकिन गोल करने के लिए अपने खेल में सुधार किया, जिससे भारत को मैच में 5-0 से जीत मिली। मैच के बाद, के.डी सिंह ने अशोक कुमार को यह कहते हुए 20 रूपए दिए कि वह अपने पिता ध्यानचंद के लिए एक टाई खरीद ले।
मुख्य अतिथि एमएलसी सी.पी चन्द ने कहा कि के.डी सिंह की महानता एक हॉकी खिलाड़ी के रूप में समेटा नहीं जा सकता है। उनका व्यक्तित्व विशाल है। जो उनकी पहचान से परे है। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने हॉकी कोच के रूप में काम किया और अपनी योग्यता साबित की। उन्होंने नयी प्रतिभाओं की खोज करने, स्पोर्ट्स कॉलेज स्थापित करने और यहां तक कि पूर्व एथलीटों को पेंशन दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस मौके पर पूर्व ओलम्पिक खिलाड़ियों को के.डी सिंह ‘बाबू‘ खेल रत्न अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिनमें पूर्व ओलम्पियन गजेन्द्र सिंह, सुजीत कुमार, आर.के टण्डन, एम.एस बोरा, आदिल रिज़वी, वीरेन्द्र ध्यानचन्द, भरत कुमार छेत्री, अविनाश कुमार, इमरानुल हक़ शामिल थे। जिन्हें मुख्य अतिथि सी.पी चन्द, के.डी सिंह बाबू के बेटे धीरेन्द्र सिंह, पूर्व विधायक सरवर अली ने सम्मानित किया। समारोह का संचालन मो उमैर किदवाई ने किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से के.डी सिंह बाबू के बेटे विश्व विजय सिंह, भांजे डाॅ डी.आर सिंह, राकेश सिंह, आनंद सिंह, राजनाथ शर्मा, सलाहउद्दीन किदवाई, देवेन्द्र ध्यानचन्द, संजय तिवारी, एस.एम साहिल, मुजीब अहमद, मो फारूक, जे.पी गुप्ता, विनय कुमार सिंह, मृत्युंजय शर्मा, दानिश सिद्दीकी, अजय सिंह गुरूजी, सहाब खालिद, डाॅ ए.ए अंसारी, वयोवृद्ध खिलाड़ी मैकेन्जी लाल, धनंजय शर्मा, हुमायूं नईम खान, सत्यवान वर्मा, प्रियंका सिंह, पं अश्वनी कुमार मिश्र, जिया उर उहमान, शऊर कामिल किदवाई आदि लोग मौजूद रहे।