एक नया फोटोकैटेलिस्ट ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स को कुशलतापूर्वक नष्ट कर सकता है
रिपोर्ट:-शमीम
वैज्ञानिकों ने एक प्रभावी फोटोकैटेलिस्ट विकसित किया है, जो सल्फामेथोक्साजोल (एक व्यापक स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक) को कम खतरनाक रसायनों में विघटित कर सकता है, तथा एंटीबायोटिक संदूषण से जुड़ी स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को कम कर सकता है।
एंटीबायोटिक संदूषण के कई प्रतिकूल प्रभाव होते हैं, जिनमें एंटीबायोटिक प्रतिरोध, पारिस्थितिक प्रभाव, मानव स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं आदि शामिल हैं। इसलिए, इस पर्यावरणीय समस्या को कम करने के उपाय खोजने की आवश्यकता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान, गुवाहाटी के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने कॉपर जिंक टिन सल्फाइड Cu2ZnSnS4 (CZTS) नैनोपार्टिकल्स (NPs) और कॉपर जिंक टिन सल्फाइड-टंगस्टन डाइसल्फ़ाइड CZTS-WS2 कंपोजिट को संश्लेषित किया है। प्रोफ़ेसर देवाशीष चौधरी के नेतृत्व वाली टीम ने जिंक क्लोराइड, कॉपर क्लोराइड, टिन क्लोराइड और टंगस्टन डाइसल्फ़ाइड की हाइड्रोथर्मल प्रतिक्रिया का उपयोग करके एक कंपोजिट बनाया जो सल्फामेथोक्साज़ोल, एक एंटीबायोटिक को विघटित करने में कुशल फोटोकैटलिस्ट है।
सल्फामेथोक्साज़ोल (एस एम एक्स) जैसे ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल लंबे समय से मूत्र और श्वसन पथ के संक्रमण जैसी मानवीय बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता रहा है। हालाँकि, 54% से ज़्यादा एस एम एक्स मरीजों के मल और मूत्र के साथ पर्यावरण में फैल गया।
प्रोफेसर चौधरी ने कहा, “सीजेडटीएस और इसके नैनोकंपोजिट बहुक्रियाशील चतुर्धातुक अर्धचालक नैनोमटेरियल हैं, जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध, सस्ते और गैर विषैले घटकों से बने हैं, जिनमें उल्लेखनीय फोटोस्टेबिलिटी है, जो इसे प्रकाश-संचयन और फोटोकैटेलिस्ट अनुप्रयोगों में बेहद मूल्यवान बनाती है।”
नूर जलाल मोंडल, राहुल सोनकर, मृदुस्मिता बर्मन और डॉ. मृत्युंजय प्रसाद घोष की टीम ने सिद्ध किया है कि सीजेडटीएस-डब्ल्यूएस2 मिश्रण सल्फामेथोक्साज़ोल के विघटन के लिए अच्छी फोटोकैटलिटिक गतिविधि प्रदर्शित करता है।
विकसित उत्प्रेरक को पुनः प्राप्त किया जा सकता है तथा इसकी प्रभावशीलता खोए बिना इसका बार-बार उपयोग किया जा सकता है, जो आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।
लिक्विड क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री ( एलसी-एमएस) एक लोकप्रिय विश्लेषणात्मक रसायन विज्ञान तकनीक है जो अपघटित उत्पाद को अलग कर सकती है और उसकी पहचान कर सकती है, जिसका उपयोग एंटीबायोटिक्स के अपघटन प्रतिक्रिया के मध्यवर्ती और अपघटित उत्पादों का विश्लेषण करने के लिए किया गया था। जर्नल ऑफ फोटोकेमिस्ट्री एंड फोटोबायोलॉजी ए में प्रकाशित अध्ययन ने निर्धारित किया कि अधिकांश मध्यवर्ती सल्फामेथोक्साज़ोल की तुलना में कम खतरनाक थे। इसके अलावा, CZTS-WS2 कंपोजिट ने 80% से अधिक रेडिकल स्कैवेंजिंग दक्षता और जीवाणुरोधी क्षमताओं का प्रदर्शन किया।