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लखनऊ

लखनऊ में चल रहे यू.पी. महोत्सव में “लक्ष्य साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था”, लखनऊ के तत्वावधान में एक कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ

लखनऊ । आज अलीगंज, लखनऊ में चल रहे यू.पी. महोत्सव में “लक्ष्य साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था”, लखनऊ के तत्वावधान में एक कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।
लक्ष्य संस्था द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ छंदकार अशोक पाण्डेय ‘अशोक’ ने की। मुख्य अतिथि डॉ शिव मंगल सिंह ‘मंगल’ एवं विशिष्ट अतिथि कन्हैयालाल रहे ।
आरम्भ वाणी निशा सिंह ‘नवल’ की वाणी वन्दना व छंदकार शरद पाण्डेय ‘शशांक’ के कुशल संचालन से हुआ ।
कार्यक्रम का प्रारंभ
‘लक्ष्य’ संस्था द्वारा समाज सेवी स्व. जगत मोहन शुक्ल जी की पावन स्मृति में “समाज सेवी पूज्य जगत मोहन शुक्ल सम्मान” से –
1. शिक्षाविद व गरीबों के मसीहा समाज सेवी अधिवक्ता रामानन्द सैनी
2. साईकिल से देश विदेश भ्रमण कर गरीब बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने वाले व गिनीज़ बुक व लिम्का बुक आॅफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवा चुके समाजसेवी साईकिल गुरू आदित्य कुमार को सम्मानित किया गया ।
साहित्य साधना सम्मान से –
1. डॉ शिव मंगल सिंह ‘मंगल’
2. संजय मल्होत्रा ‘हमनवा’
3. महेश चन्द्र गुप्ता ‘महेश’
4. राम नरेश पाल
5. देवेश द्विवेदी ‘देवेश’
6. आचार्य प्रेम शंकर शास्त्री ‘बेताब’
7. डाॅ सुधा मिश्रा
नाट्यकला गौरव सम्मान से
1. श्रुति भट्टाचार्य को सम्मानित किया गया ।

काव्य पाठ करने वाले कवि कवयित्रियों के नाम एव उनके काव्यांश निम्नवत हैं :
महिमा तिवारी :-
शीश पटल पर हुई शुशोभित, बन माथे की बिंदी है,
मन से सब स्वीकार करो, निज राष्ट्र की भाषा हिंदी है।।

प्रेम शंकर शास्त्री “बेताब” :-
मधुर संगीत का सरगम, कहीं निर्झर सुनाता है,
महत्ता इसकी गिन गिन के, कहीं चातक बताता है,
कहाता नीर ही जीवन, इसे मत भूलना यारों, इसे बर्बाद होने से,सदा प्यासा बचाता है।

पण्डित बेअदब लखनवी –
हमारा देश अनोखा है सारी दुनिया से,
फरेब-ओ-मक्र कभी भी यहाँ नहीं चलता,
अदालतें हो या दफ्तर हो कोई सरकारी,
मुझे बताइये पैसा कहाँ नहीं चलता ।

प्रिया सिंह :-

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जज़्बा वफा का दिल से रवाना नहीं हुआ, दीवानगी में उनको भुलाना नही हुआ।
सारा लहु पिला दिया लफ़्ज़ों को ज़हन का,
और आप कह रहे हो तराना नहीं हुआ।।

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निशा सिंह ‘नवल’ :-

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चाहतों का शुरु सिलसिला कीजिए, बेवजह हो सके तो मिला कीजिए,
होंगे मजबूत रिश्ते यकींकन सभी,
भूल से भी न शिकवा गिला कीजिए।।

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देवेश द्विवेदी ‘देवेश’ :-

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आब-औ’-हवा वही है हालात हैं वही….
फिर भी हैं लोग कहते नया साल आ गया।

भारती अग्रवाल ‘पायल’ :-

देखती गोरी मुझे रहती गजब उसकी नजर है, साथ में उसके मुझे लगती सुहानी हर डगर है,
रुपसी चलती लिये चूनर सितारों से सजी सी,
चाँदनी सा रुप दिखता प्रेम पथ पर अग्रसर है।।

श्रुति भट्टाचार्य :-

चलो जुगनुओं को ही कैदी बना लें, सितारें तो मुठ्ठी में आतें नहीं हैं ।

महेश चन्द्र गुप्त ‘महेश’ :-

सुनो ऐ मीत गया जो बीत, उसे भूलने बिसरने दो,
आया नववर्ष लेकर हर्ष, नये सपने संवरने दो।

डॉ सुधा मिश्रा :-

मैं स्वयं गर्विता मातृ रुपणी मनहर और हितकारी हूँ,
मैं स्वयं पराजित स्वयं विजेता सृष्टि की अनुपम चित्रकारी हूँ।

संजय मल्होत्रा ‘हमनवा’ :-

अपने अपने मजहब के तो ठेकेदार हजारों हैं, जिसको हर मजहब हो प्यारा ऐसा कोई नहीं मिलता,
जो हमारी हालत से मुद्दतों से गाफ़िल है, हमनवा उन्हीं को अब दास्तां सुनानी है।

डॉ ममता पंकज :-

समष्टि व्यष्टि कौन माने! “राम को समझा किसने, राम जाने !”

राम नरेश पाल :-

एक छोटे से जुर्म में लग रही थी बड़ी दफा,
कुछ पैसे खर्च कर दिए हो गई वह रफा-दफा,
इस तरह का सूत्र जिनके हाथ में आता गया,
हुई रुकावटें दूर सारी एक नहीं कई दफा।

शरद कुमार पांडेय ‘शशांक’ :-
लाला जी हमारी बात मान आप लीजिये,
इत्र बेचिये परंतु बेचिये चरित्र नहीं,
मित्र की सलाह ठीक जान आप लीजिये,
खोलने से पहले दुकान जानकारी करें,
मालुम नहीं तो सही ज्ञान आप लीजिये।

डॉ शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ –
आइये माँ भारती की वंदना के स्वर सजायें, हिंद हिंदी के परम वैभवमयी यश गीत गायें।
अशोक पाण्डेय ‘अशोक’ –
नष्ट हो गये हैं पूर्ण रूप से सभी प्रसून,
शिशिर ने क्रूर हो तुषार वज्र मारा है,
ठिठुर रहे हैं हाँथ, पाँव सभी काँपते हैं,
जलता अलाव एक सबल सहारा है।

इसके अतिरिक्त पण्डित बेअदब लखनवी, रामानंद सैनी, कानपुर के युवा कवि प्रशान्त अवस्थी, मनमोहन बाराकोटी ‘तमाचा लखनवी’, भ्रमर बैसवारी, प्रवीण कुमार शुक्ला ‘गोबर गणेश’, कन्हैयालाल आदि कवियों ने काव्यपाठ कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सचिव प्रवीण कुमार शुक्ला ‘गोबर गणेश’ ने किया

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