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दिल्लीभारत

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने कीचड़ प्रबंधन और ‘ऑनलाइन सतत प्रवाह निगरानी प्रणालियों’ पर कार्यशाला का आयोजन किया।

 

रिपोर्ट :- शिवा वर्मा/यूपी ब्रेकिंग न्यूज 

कीचड़ को देश के लिए सोने की खान के रूप में देखें: डीजी, एनएमसीजी।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक श्री जी. अशोक कुमार ने 2 मई 2023 को नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘ऑनलाइन सतत प्रवाह निगरानी प्रणाली (ओसीईएमएस) : मुद्दे, चुनौतियां और आगे की राह’ और ‘कीचड़ प्रबंधन : मुद्दे, चुनौतियां और आगे की राह’ विषयों पर हुईं कार्याशालाओं की अध्यक्षता की। इन कार्यशालाओं में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफएंडसीसी), आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (एमओएचयूए), राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय (एनआरसीडी), राज्य सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों, शोधकर्ताओं, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों आदि ने हिस्सा लिया। ‘गंगा बेसिन में एसटीपी/ईटीपी की विभिन्न श्रेणियों में ऑनलाइन सतत प्रवाह निगरानी प्रणाली के लिए आवश्यक मानदंडों और व्यवहार्य प्रौद्योगिकियां स्थापित करने’ और ‘सुरक्षित और कुशल कीचड़ प्रबंधन की विशेषताओं का वर्णन और नीतिगत रूपरेखा दिशानिर्देशों के निर्धारण’ से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई। ओसीईएमएस कार्यशाला के उद्घाटन के मौके पर विचार व्यक्त करते हुए श्री जी. अशोक कुमार ने विश्वसनीय और अनुकरण किए जाने योग्य डेटा के लिहाज से कार्यशालाओं के महत्व पर जोर दिया। श्री अशोक कुमार ने कहा, “नमामि गंगे के तहत 35,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें से 29,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं सीवरेज प्रबंधन के लिए हैं। ये बड़े निवेश हैं और अगर हम इनके परिणामों के बारे में नहीं जाते हैं तो तो यह सही नहीं है।” उन्होंने कहा, “नमामि गंगे को प्राकृतिक दुनिया को पुनर्जीवित करने के लिए दुनिया के शीर्ष 10 प्रमुख बहाली परियोजनाओं में से एक के रूप में मान्यता के साथ विश्व हमें एक उदाहरण के रूप में देख रहा है। मार्च 2023 में न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र विश्व जल सम्मेलन 2023 के दौरान भी नमामि गंगे कार्यक्रम में काफी दिलचस्पी देखने को मिली थी।

श्री जी. अशोक कुमार ने कहा कि कार्यक्रम के परिणाम का अनुमान लगाने के लिए निरंतर निष्पक्ष और सुसंगत डेटा की रूपरेखा तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मानव तत्व शोर को बढ़ाता है और डेटा को विकृत करता है, और हम सटीक आंकड़ों की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व-निर्धारित मापदंडों की आवश्यकता पर जोर दिया जो स्रोत से सर्वर तक सटीक डेटा का संचार कर सकें। उन्होंने कहा, “अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किए जाने पर मानवीय दखल से तबाही और अव्यवस्था पैदा हो सकती है।” आकलन करने और राष्ट्रव्यापी मानदंड तैयार करने के संबंध में कई विचारों से स्रोत से एक टिकाऊ और उचित जानकारी मिलेगी। उन्होंने कहा, “जब तक किसी चीज की निगरानी नहीं की जाती है, उसमें सुधार के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। अगर हम पानी की गुणवत्ता में सुधार करना चाहते हैं, तो इसकी निगरानी करनी होगी। निगरानी के लिए, सही डेटा को मापना होगा।” एनएमसीजी के डीजी ने शिक्षाविदों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों से डेटा के स्रोत को मापने के लिए जरूरी मानदंडों को अंतिम रूप देने का आह्वान किया और कहा कि ये मानदंड क्रांतिकारी हो सकते हैं और विश्वसनीय और दोहराने योग्य होने तक इनके भारतीय मानकों तक ही सीमित रहने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा, “कहीं न कहीं किसी तकनीक की उपलब्धता सुनिश्चित होने तक मानदंडों को विश्वसनीय तरीके से मापा और प्रसारित किया जाना चाहिए। इसका निष्कर्ष यह है कि आपको दुनिया में कहीं से भी कोई प्रौद्योगिकी मिले, आकलन कीजिए कि आपको कौन से मानदंडों की जरूरत है। लेकिन आखिर में एक ऐसा समाधान लाने की जरूरत है जो बिना किसी पूर्वाग्रह, अंतर या डर के कंप्यूटर स्क्रीन पर एक टिकाऊ, विश्वसनीय और अनुकरण योग्य डाटा दे सकता हो और जमीनी स्तर की सही तस्वीर सामने रख सके।” हाल में, एनएमसीजी ने प्रयाग (पीआरएवाईएजी) का शुभारम्भ किया, जिसका मतलब है प्लेटफॉर्म फॉर रियल टाइम एनालिसिस ऑफ यमुना, गंगा एंड देयर ट्रिब्यूटरीज। कीचड़ प्रबंधन पर, श्री जी. अशोक कुमार ने देश के लिए कीचड़ को सोने की खान के रूप में देखने के लिए एक बड़े परिवर्तन का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “एनएमसीजी की उपचार क्षमता बीते 7-8 साल में बढ़कर खासी बढ़ गई है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नदी के प्रदूषित खंडों एक उचित समाधान हो।” उन्होंने कहा, “इससे कीचड़ की बड़ी मात्रा की एक नई समस्या सामने आती है और पिछले डेढ़ साल में, नमामि गंगे मिशन अर्थ गंगा अभियान के तहत गंगा बेसिन में प्राकृतिक खेती में मिट्टी के कंडीशनर के रूप में कीचड़ के उपयोग सहित अपशिष्ट जल और कीचड़ के पुन: उपयोग के मुद्रीकरण के विभिन्न तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।” एनएमसीजी लोगों के कीचड़ के प्रति नजरिए में बदलाव लाना चाहता है। मल जल शोधन और गंगा कायाकल्प की प्रक्रिया को स्थानीय लोगों और किसानों के साथ जोड़ने के लिए एसटीपी का नाम बदलकर ‘निर्मल जल केंद्र’ किया गया है। उन्होंने कहा कि एसटीपी और स्थानीय शहरी निकायों के लिए अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न करने के उद्देश्य से कीचड़ का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने उपचारित जल के सुरक्षित उपयोग के लिए राष्ट्रीय रूपरेखा का भी उल्लेख किया जिसे हाल ही में एनएमसीजी ने लॉन्च किया है। उन्होंने कहा, “हमें किसी भी स्वास्थ्य प्रभाव के बिना मिट्टी के कंडीशनर के रूप में कीचड़ का उपयोग करने, कीचड़ की मात्रा को कम और पानी से मुक्त करने, किसानों को हमसे कीचड़ लेने के लिए प्रेरित करने, अतिरिक्त खनिजों के साथ कीचड़ को बेहतर बनाने और इसे उर्वरक या खाद के रूप में बाजार में लाने पर विचार करने की जरूरत है।” एनएमसीजी के कार्यकारी निदेशक (तकनीक) श्री डी. पी. मथुरिया ने स्वागत भाषण दिया और विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों की विश्वसनीयता के प्रश्न पर विचार करते हुए एक प्रस्तुति दी। ओसीईएमएस कार्यशाला के दौरान, रियल टाइम सेंसर/ एनालाइजर का उपयोग करके ऑनलाइन प्रभावशाली और प्रवाह गुणवत्ता मापन के लिए तकनीकों/ उपकरणों, जल गुणवत्ता, साइट चयन/स्थितियों के विभिन्न मैट्रिक्स के लिए उपलब्ध प्रौद्योगिकियों और प्रौद्योगिकियों की उपयुक्तता, ऑनलाइन/ इन-लाइन सेंसर्स/ एनालाइसर्स बनाम लैब एनालिसिस- सेंसर की तुलना और एनालाइसर की सटीकता और स्वीकृत अंतर, सत्यापन, कैलिबरेशन फ्रीक्वेंसी, बीओडी, सीओडी, टीएसएस, टीओसी सेंसर/ एनालाइसर्स की तुलना, सूचना देने और डेटा संचरण के तरीकों और विभिन्न उपलब्ध प्रौद्योगिकियों के लिए वाणिज्यिक व्यवहार्यता विश्लेषण पर विचार विमर्श किया गया।

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