निवेश, सहयोग और मजबूत अनुसंधान एवं विकास इको-सिस्टम सीसीयूएस में राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पैदा कर सकते हैं: विशेषज्ञ
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रिपोर्ट:-शमीम
अनुसंधान और शिक्षा विशेषज्ञों ने कार्बन कैप्चर उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) में सरकार तथा उद्योग दोनों से निवेश की आवश्यकता और सीसीयूएस के माध्यम से भारत के नेट जीरो लक्ष्यों की दिशा में सहयोग के साथ काम करने के लिए क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञों के महत्व पर प्रकाश डाला।
डीएसटी सचिव प्रोफेसर अबे करंदीकर ने सीसीयूएस के माध्यम से भारत के नेट जीरो लक्ष्यों की दिशा में डीएसटी के रोडमैप पर परामर्श सत्र में कहा, “बड़े पैमाने पर लागत प्रभावी तकनीकी तैनाती के लिए निवेश और वित्त पोषण की आवश्यकता है तथा देश के सभी प्रमुख विशेषज्ञों को इस दिशा में काम करने के लिए एक साथ आना चाहिए।
उन्होंने बताया कि प्रौद्योगिकी की स्थिति को मैप करने की आवश्यकता है और यह एक मजबूत अनुसंधान और विकास इको-सिस्टम विकसित करने के लिए आधार बना सकता है जहां सहयोगी प्रयासों से परिणाम निकल सकता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा आयोजित मंथन सत्र में प्रोफेसर करंदीकर ने कहा- “कुछ प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यीकरण के लिए उद्योग से संयुक्त वित्त पोषण हो सकता है। एक ठोस कार्य योजना पर फोकस किए गए इनक्यूबेशन कार्यक्रमों को बनाना और वित्त पोषित करना शामिल होना चाहिए।
उन्होंने बल देकर कहा कि डीएसटी एक कार्यक्रम तैयार करने की दिशा में काम करेगा जो अगले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव पैदा करेगा।
बैठक में सीसीयूएस प्रौद्योगिकियों के विकास और तैनाती में तेजी लाने में सरकार की भूमिका पर बल देने के साथ सीसीयूएस से संबंधित अवसरों और चुनौतियों पर फोकस किया गया।
डीएसटी के वरिष्ठ सलाहकार और एसईआरबी के सचिव डॉ. अखिलेश गुप्ता ने इस परिदृश्य में सीसीयूएस के महत्व पर प्रकाश डाला, जहां पिछले कुछ वर्षों में आईपीसीसी रिपोर्टों से पता चला है कि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 1.2 डिग्री की औसत से बढ़ गया है और तबाही हमें घूर रही है क्योंकि यह प्रति दशक लगभग 0.2 डिग्री बढ़ने का अनुमान है।
आईआईटी दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर रंगन बनर्जी ने कहा- “हमें कई अच्छी तरह से प्रलेखित पायलटों, उनकी व्यवहार्यता का विस्तृत अध्ययन, क्षेत्र में संभावित विजेताओं पर फोकस करने के लिए महत्वपूर्ण धन पोषण की आवश्यकता है ताकि उन प्रौद्योगिकियों को विकसित किया जा सके जो वास्तव में तैनात होने पर काम कर सकते हैं। वैश्विक सहयोगी प्रौद्योगिकी विकास सफलता की दिशा में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है।”
डीएसटी के सी 3 ई डिवीजन की प्रमुख डॉ अनीता गुप्ता ने डीएसटी की सीसीयूएस गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
विचार-विमर्श में एनटीपीसी, भेल, ओएनजीसी, रिलायंस, टाटा स्टील, आदित्य बिड़ला सीमेंट, अल्ट्राटेक आदि तथा थर्मल, तेल, इस्पात और सीमेंट जैसे कठिन क्षेत्रों से अनुसंधान और शिक्षाविदों के वरिष्ठ सीसीयूएस विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी रही।
भारत के माननीय प्रधान मंत्री ने सीओपी-26, ग्लासगो, स्कॉटलैंड में “भारत का पंचामृत अमृत तत्व” को स्पष्ट करके जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक स्थायी भविष्य का मार्ग दिखाया। भारत सरकार ने 2070 तक कार्बन-तटस्थ अर्थव्यवस्था प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस संदर्भ में, कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (सीसीयूएस) ने राष्ट्रीय और वैश्विक दोनों संदर्भों में महत्वपूर्ण प्रासंगिकता प्राप्त की है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेट जीरो प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) सीसीयूएस के लिए एक मजबूत इको-सिस्टम बनाने की दिशा में प्रतिबद्ध है। यह सीसीयूएस मूल्य श्रृंखला के विकास और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण तथा बहुपक्षीय /द्विपक्षीय संबंधों के लिए संभावित अनुसंधान एवं विकास दिशाओं के लिए रोडमैप की दिशा में लगातार योगदान दे रहा है।
सीसीयूएस मूल्य श्रृंखला को और मजबूत बनाने तथा वास्तविक क्षेत्र और बाजार की ओर प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संबंधित उद्योगों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, अनुसंधान समूहों, अकादमी, सरकार और नीति निर्माताओं के विशेषज्ञों/प्रतिनिधियों के साथ परामर्शी विचार-मंथन बैठक का आयोजन किया गया।
इसने प्रासंगिक उद्योग, अकादमी, अनुसंधान समूहों और नीति निर्माताओं के बीच संवाद को बढ़ावा देने तथा राष्ट्रीय सीसीयूएस प्रयासों को उजागर करने, राष्ट्रीय स्थिति का आकलन करने और संभावित सार्वजनिक निजी भागीदारी क्षेत्रों का पता लगाने में सहायता की।
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