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नई दिल्ली में आयोजित ‘इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग’ में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा।

भारत इस क्षेत्र और व्यापक वैश्विक समुदाय के आर्थिक विकास के लिए एक स्वतंत्र और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत का पक्षधर है।

 

रिपोर्ट :- शिवा वर्मा (संपादक)

“विवादों को हल करने और वैश्विक व्यवस्था का सृजन करने के लिए केवल संवाद ही एक सभ्य तंत्र है!

भारत ऐसी विश्व व्यवस्था में विश्वास नहीं रखता है, जहां कुछ देशों को दूसरों से श्रेष्ठ माना जाता है, केवल बहु-आयामी नीति ही साझा समृद्धि का रास्ता है: रक्षा मंत्री!

भारत एक स्वतंत्र, मुक्त और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत का पक्षधर है क्योंकि यह न केवल इस क्षेत्र बल्कि व्यापक वैश्विक समुदाय के आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 25 नवंबर, 2022 को नई दिल्ली में आयोजित ‘इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग’ (आईपीआरडी) में अपने मुख्य संबोधन के दौरान यह बात कही। श्री राजनाथ सिंह ने जून, 2018 में सिंगापुर में आयोजित शांगरी-ला डायलॉग के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के विचारों का उल्लेख करते हुए हिंद-प्रशांत के बारे में भारत के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।

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रक्षा मंत्री ने उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत एक स्वतंत्र, मुक्त और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का पक्षधर है, जो प्रगति और समृद्धि के साझा लक्ष्य में सभी को गले लगाता है। उन्होंने इस क्षेत्र में आसियान के केंद्र बिंदु के बारे में अपने विचारों को सामने रखते हुए कहा कि हमारी साझा समृद्धि और सुरक्षा के लिए हमें बातचीत के माध्यम से एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की जरूरत है।

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राजनाथ सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि विवादों और असहमतियों को हल करने और क्षेत्रीय या वैश्विक व्यवस्था का सृजन करने के लिए केवल संवाद ही एक मात्र सभ्य तंत्र है। रक्षा मंत्री ने हाल ही में बाली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री के उस संदेश का उल्लेख किया कि अब “युद्ध का युग समाप्त हो गया है”। जिसका विश्व के नेताओं ने जी-20 की विज्ञप्ति में यह उल्लेख करते हुए कि ‘अब युद्ध का समय नहीं है’ वाले प्रधानमंत्री के संदेश का ध्वनिमत से अनुकरण किया था। “ऐसे समय में जब मानवता जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी और व्यापक रूप से अभाव जैसी समस्याओं का सामना कर रही हो, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम सभी युद्धों और संघर्षों के विनाशकारी झांसे से विचलित हुए बिना, इन विशाल चुनौतियों से निपटने के लिए परस्पर मिलकर काम करें।”

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रक्षा मंत्री ने व्यापार और कनेक्टिविटी को बढ़ाने, क्षमता निर्माण करने और बुनियादी ढांचागत पहलों को बढ़ाने के लिए एक साथ मिलकर समय की कसौटी के तरीकों के रूप में काम करने के लिए कहा, जो मैत्री के पुल के रूप में काम कर सकते हैं और इनसे पारस्परिक लाभ भी सुनिश्चित हो सकता है। उन्होंने साझा भलाई के लिए सामूहिक रूप से उनका लाभ उठाने की जरूरत पर जोर दिया।

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श्री राजनाथ सिंह ने इस बात को दोहराया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रचनात्मक जुड़ाव में अपने सहयोगियों के साथ काम करने का भारत ने हमेशा ही प्रयास किया है। उन्होंने नवंबर 2019 में बैंकॉक (थाईलैंड) में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू की गई ‘भारत-प्रशांत महासागर पहल’ के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस पहल के लिए क्षेत्रीय सहयोग और भागीदारी महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जो सागर यानी सभी क्षेत्र के लिए सुरक्षा और विकास के विजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एक क्षेत्रीय सहकारी संरचना की रूपरेखा तैयार करते हैं।

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रक्षा मंत्री ने इस सप्ताह के शुरू में कंबोडिया में आयोजित भारत-आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान घोषित की गई पहलों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि “हमने संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में महिलाओं के लिए आसियान-भारत पहल का प्रस्ताव किया है, जो एक अधिक मानवीय दृष्टिकोण के माध्यम से प्रभावी संघर्ष समाधान और स्थायी शांति की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा। हमने समुद्री इकोसिस्टम को बेहतर बनाने की दिशा में समुद्री प्लास्टिक कार्य के बारे में प्रदूषण प्रतिक्रिया पर आसियान-भारत पहल का भी प्रस्ताव किया है। रक्षा मंत्री ने यह बात सामूहिक सुरक्षा और साझा समृद्धि की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कही।

राजनाथ सिंह ने एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण विश्व के निर्माण की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों को एक नैतिक जिम्मेदारी बताया। उन्होंने कहा कि भारत में, हमारे दार्शनिकों और दूरदर्शी लोगों ने हमेशा राजनीतिक सीमाओं से हटकर एक मानव समुदाय का सपना देखा है। हमने सदैव सुरक्षा और समृद्धि को संपूर्ण मानव जाति के सामूहिक लक्ष्य के रूप में देखा है, जिसमें द्वीप सुरक्षा या समृद्धि की कोई संभावना नहीं है।

रक्षा मंत्री ने सभी के लिए लाभकारी वैश्विक व्यवस्था बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सुरक्षा को वास्तविक रूप में एक सामूहिक उद्यम के रूप में शामिल करने का आह्वान किया। “राष्ट्रीय सुरक्षा को ‘शून्य-राशि के खेल’ के रूप में नहीं बल्कि सभी के लिए जीत वाली स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें अपने ऐसे हितों द्वारा ही निर्देशित किया जाना चाहिए जो टिकाऊ हों और जो परेशानियों के प्रति लचीले हों। मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण दूसरे देशों की कीमत पर नहीं किया जाएगा, बल्कि हम यहां अन्य देशों को उनकी अपनी पूरी क्षमता का एहसास कराने में सहायता करने के लिए तत्पर हैं। रक्षा मंत्री ने कहा कि वैश्विक समुदाय कई प्लेटफार्मों और एजेंसियों के माध्यम से काम कर रहा है, उनमें से सबसे प्रमुख संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद है, लेकिन अब सामूहिक सुरक्षा के प्रतिमान को बुलंद करने के लिए सभी के लिए साझा हितों और सुरक्षा के स्तर बढ़ाने की आवश्यकता है।

श्री राजनाथ सिंह ने विविध हितधारकों के साथ व्यापक जुड़ावों के माध्यम से जारी की गई बहु-आयामी नीति में भारत के विश्वास को दोहराते हुए, इस बात पर जोर दिया कि सभी की चिंताओं से निपटने का एकमात्र रास्ता साझा जिम्मेदारी और समृद्धि ही हो सकती है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कि रणनीतिक नीति का संचालन नैतिक होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ऐसी विश्व व्यवस्था में विश्वास नहीं करता है जहां कुछ देशों को दूसरों से बेहतर माना जाता हो।

रक्षा मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की कार्रवाइयाँ मानव समानता और गरिमा के मूल सिद्धांत द्वारा निर्देशित हैं, जो प्राचीन लोकाचार और मजबूत नैतिक नींव का एक हिस्सा हैं। नैतिक या अनैतिक होने के लिए व्यावहारिक राजनीति ही अंजीर का पत्ता (महत्वपूर्ण) नहीं हो सकती है। बल्कि, सामरिक नैतिकता के ढांचे के भीतर राष्ट्रों के अपने हितों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जो सभी सभ्य राष्ट्रों की वैध रणनीतिक अनिवार्यता के लिए समझ और सम्मान पर आधारित हों। यही कारण है कि जब हम किसी राष्ट्र के साथ साझेदारी करते हैं तो यह संप्रभु, समानता और परस्पर सम्मान के आधार पर होती है। जैसे-जैसे हम परस्पर आर्थिक विकास की दिशा में काम करते हैं, वैसे-वैसे भारत के साथ संबंधों में स्वाभाविकता आती जाती है। इस प्रकार यह उचित है कि हम सभी आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का समाधान तलाशें जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे हों।

तीन दिवसीय आईपीआरडी के समापन दिवस पर आयोजित इस विशेष सत्र में, जिसे उपयुक्त रूप से ‘मार्गदर्शन’ सत्र कहा गया, नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार ने भारत की समग्र समुद्री सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरों और चुनौतियों के बारे में बातचीत करते हुए राष्ट्र के समुद्री हितों के संरक्षण लिए प्रतिबद्ध संकल्प के लिए भारतीय नौसेना की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई नेट सुरक्षा प्रदाताओं के अग्रगामी होने की अच्छी स्थिति में है और विशेष रूप से इस क्षेत्र के पश्चिमी खंड अर्थात् हिंद महासागर में उसे एक मुख्य सुरक्षा-साझेदार के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने रक्षा क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’ प्राप्त करने के बारे में नौसेना की प्रतिबद्धता को दोहराया।

इस अवसर पर, रक्षा मंत्री ने नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (एनएमएफ) द्वारा प्रकाशित ‘कोस्टल सिक्योरिटी डाइमेंशन्स ऑफ मैरीटाइम सिक्योरिटी’ नामक एक पुस्तक का भी विमोचन किया।

आईपीआरडी भारतीय नौसेना का एक वार्षिक शीर्ष स्तर का अंतर्राष्ट्रीय आउटरीच कार्यक्रम है, जिसमें विचारों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन मिलता है तथा इंडो-पैसिफिक से संबंधित समुद्री मुद्दों पर विचार-विमर्श को भी बढ़ावा दिया जाता है। भारत का समुद्र तट अफ्रीका के पूर्वी तट से अमेरिका के पश्चिमी तट एक विशाल, विशेष रूप से समुद्री विस्तार तक फैला हुआ है।

यह कार्यक्रम का आयोजन एनएमएफ, नई दिल्ली द्वारा भारतीय नौसेना के ज्ञान भागीदार के रूप में आयोजित किया गया था। आईपीआरडी में भारतीय सशस्त्र बलों, नौवहन, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों, भारतीय उद्योग के वरिष्ठ प्रतिनिधियों, भारत में विभिन्न मिशनों के राजनयिक प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, प्रतिष्ठित विद्वानों और विदेशी विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी रही। इसके अलावा, तीन दिनों में लगभग 2,000 कर्मियों और दिग्गजों, प्रतिष्ठित नागरिकों और दिल्ली-एनसीआर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के छात्रों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया।

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