देश में आपातकाल या इमरजेंसी लगे आज 48 साल हो गए।
रिपोर्ट :- शिवा वर्मा/यूपी ब्रेकिंग न्यूज
बाराबंकी। देश में आपातकाल या इमरजेंसी लगे आज 48 साल हो गए। लेकिन मेरे लिए वह दौर एक भयानक सपने की तरह कल की तरह मालूम होता है। 14 जुलाई 1975 को डीआईआर के तहत गिरफ्तार किया गया और जब आपातकाल खत्म हुआ तब जेल से छूटा। इस बीच मेरे क़रीबी रिश्तेदारों ने भी हमसे मिलना जुलना बंद कर दिया क्योंकि उन्हें डर था की कहीं उन्हें भी गिरफ़्तार न कर लिया जाये।
यह बात गांधी भवन में ‘आपातकाल के 48 साल’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे लोकतंत्र रक्षक सेनानी राजनाथ शर्मा ने कही। इस मौके पर मधु लिमये, जॉर्ज फर्नांडिस, लाडली मोहन निगम, चन्द्रशेखर सरीखे सोशलिस्ट नेताओं के चित्र पर मार्ल्यापण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
श्री शर्मा ने बताया कि इमरजेंसी के दौरान तानाशाही अपने उरूज पर थी। संजय गांधी और उनके समर्थकों का बोलबाला था। नागरिक अधिकारों के ख़ात्मे के अलावा प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी गई। बिना सरकार की इजाज़त कोई भी खबर छापना अपराध था। विधायिका और न्यायपालिका का गला घोंट दिया गया। पुलिस और प्रशासन पूरी तरह सरकार के क़ब्ज़े में था और सरकार की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता था।
श्री शर्मा ने कहा कि इमरजेंसी के अपराध अक्षम्य थे और उन्हें किसी भी तरह माफ़ नहीं किया जा सकता साथ ही आज़ाद हिंदुस्तान के पचहत्तर सालों में 19 माह का आपातकाल का दौर एक बदनुमा दाग़ की तरह है। आपातकाल के बाद से अब तक लोकतांत्रिक व्यवस्था चली आ रही है। सरकारों की जनविरोधी नीतियों के प्रतिरोध में उठने वाली आवाज का दमन करने की प्रवृत्ति अभी भी कायम है, लेकिन किसी भी सरकार ने नागरिक अधिकारों के हनन का वैसा दुस्साहस नहीं किया है, जैसा आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने किया था।
संगोष्ठी में प्रमुख रूप से समाजसेवी विनय कुमार सिंह, मृत्युंजय शर्मा, हुमायूं नईम खान, सपा नेता उमानाथ यादव, अनुपम सिंह राठौर, पाटेश्वरी प्रसाद, नीरज दूबे, अशोक जायसवाल, शिवा शर्मा, सत्यवान वर्मा सहित कई लोग उपस्थित हुए।