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उप राष्ट्रपति सचिवालयभारत

उपराष्ट्रपति के भाषण के प्रमुख अंश – राजस्थान के नवनिर्वाचित विधायकों के लिए उपराष्ट्रपति माननीय जगदीप धनखड़ द्वारा ओरिएंटेशन कार्यक्रम का उद्घाटन

रिपोर्ट:-शमीम 

सबसे बड़ी मुश्किल आती तब है जब आप उनके सामने होते हो जो आपको पूरी तरह जानते हैं, यह समस्या मेरे सामने है। अपनों के बीच में बोलना यह मेरा कद नहीं है। मुझे यहां बहुत कुछ सीखने को मिला है। तो मेरा वक्तव्य अनौपचारिक रहेगा।

मुझे आशा थी कि प्रतिपक्ष के बहुत से लोग यहां होंगे। उनकी अनुपस्थिति मुझे थोड़ी खल रही है पर मैं मान कर चलता हूं कि कोई ऐसा कारण होगा जिसकी वजह से वह आज नहीं आ पाए। हर परिस्थिति में पधारो मारे राजस्थान को कभी नहीं भूलना चाहिए। किसी के लिए नहीं भूलना चाहिए, कोई भी समय हो कोई भी व्यक्ति हो, थोड़ा सा मैंने महसूस किया है।

सदन में अगली बात यह कहूंगा की सूचना न होना आज के दिन कोई नहीं मानेगा। सोशल मीडिया इतना जबरदस्त है। मैं प्रतिपक्ष की हर सदस्य को मेरा प्रणाम करता हूं और यह वह वर्ग है जो विधानसभा के लिए रीड की हड्डी का काम करेगा।

उपराष्ट्रपति की वजह से मैं लोकसभा का स्पीकर नहीं हूं, राज्यसभा का हूं। राजस्थान का परम सौभाग्य है कि ओम बिरला जी वहां है। हम दोनों में विचार मंथन होता रहता है। उनसे मैंने ज्ञान प्राप्त किया और एक ही बात कही जब कुर्सी पर बैठो तो सबसे पहले बाई तरफ देखो।  मैंने कहा क्यों? उन्होंने कहा भगवान ने शरीर का निर्माण किया है और दिल भी बाई तरफ होता है और सत्ता पक्ष दाई तरफ है। मैंने सदैव इसका पालन किया है।

प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, पक्ष हो या विपक्ष, दोनों तरफ पूर्व मुख्यमंत्री होंगे, अनुभवी नेता होंगे, और सदन एक प्रकार की तरह चलेगा तो राज्य का बहुत बड़ा भला होगा। सत्ता पक्ष को हमेशा ध्यान रखना पड़ेगा कि सामने वाला विरोधी नहीं है। सामने वाला जो बात कहता है, वह जनहित की है।

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इस मौके पर मैं डॉक्टर सीपी जोशी जी का अभिनंदन करना चाहूंगा। वह साधुवाद के पात्र हैं। अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर इस सदन में कार्यक्रम आयोजित किये। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की हैसियत से उन्होंने मुझे यहां बुलाया। फर्क सिर्फ इतना था तब उपस्थिती ज्यादा प्रभावि थी. उपराष्ट्रपति की हसियत से जो उन्होंने मुझे बुलाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर का जब कार्यक्रम हुआ तो उदयपुर में उन्होंने बुलाया। मैंने हर बार उनको एक ही बात कही विधानसभा का अध्यक्ष किसी दल से जुड़ा हुआ नहीं है, विधानसभा के अध्यक्ष का पहला कर्तव्य है कि वह प्रति-प्रतिपक्ष का संरक्षण करें. कुछ ऐसा वातावरण बन जाता है जब हमें कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं पर कहते हैं खीर कितनी अच्छी है खाने से ही पता चलती है और यही कारण है कि पश्चिम बंगाल के जो बहुत बड़ा प्रांत है सांस्कृतिक राजधानी देश की कही जा सकती है वहा की मुख्यमंत्री श्री ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति के चुनाव में मेरा विरोध नहीं किया।  जब मैंने यह बात यहां कहीं तब उस समय के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी ने कहा की जादूगर तो मैं हूं। आपने कौन सा जादू ममता पर किया था|

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आप यदि अपने कर्तव्य पर रहेंगे, तो आखिर में नतीजा कभी खराब नहीं होगा। आज हम बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं और भारत इतना बदल गया है। इतना बदल गया है राजनीतिक दृष्टि से, सामाजिक दृष्टि से, और आर्थिक दृष्टि से। विश्‍व में नाम हो गया है कि अब हम विश्‍व किसी देश के मोहताज नहीं हैं, दुनिया की पांचवी महाशक्ति होना अर्थव्यवस्था में छोटा काम नहीं है।

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मेरे कहने का आश्रय है की इन सब का निर्माण सदन करती है। इस बहुत बड़े हवन में आपका योगदान है. नेतृत्व का है, नीति का है और आम आदमी का भी योगदान है। आपके सामने चुनौती ज्यादा है क्योंकि जिस गति से भारत आगे बढ़ रहा है, दुनिया अचंभित है, दुनिया सोच नहीं पाई की क्या भारत में कभी aisa हो सकता था। हम जब लोकसभा में थे केंद्र में मंत्री थे कभी कल्पना नहीं की थी, कभी सोचा नहीं कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट विकास स्तर का होगा। यह हर भारतीय के खून और पसीने का नतीजा है। नीतियाँ और समर्पण की भावना से है। किसी भी विकास की गंगा की शुरुआत विधायिका से होती है। विधायिका का सबसे प्रमुख कर्तव्य है कि विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों को सही दृष्टिकोण में रखें। कार्यपालिका को कटघरे में रखने का कार्यपालिका को सही रास्ता दिखाने में कार्यपालिका नियम के अनुसार कम करें, यह सदन का कर्तव्य है। यह सिर्फ भाई तरफ का नहीं दोनों तरफ का है। यदि अगर सरकार को आइना दिखाया जाएगा तो सरकार के लिए बहुत लाभकारी होगा. मेरे कहने का मतलब यह है कि सदन के अंदर जो हम कार्यवाही करते हैं, उसका असर प्रांत में नहीं, प्रांत के बाहर भी पड़ता है।

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सबसे पहले तो आपको ध्यान रखना चाहिए कि संविधान सभा में कार्यवाही कैसे हुई। करीब 3 साल तक संविधान सभा चली। कई सत्र हुए। उनके सामने बहुत बड़ी चुनौतियां थी। मुश्किल विषय थे। एक मत बनाना मुश्किल था। उन लोगों ने विजयपुरण तरीके से जो काम किया वह आपका आदर्श होना चाहिए। 3 साल के काल में एक बार भी व्यवधान नहीं हुआ, एक बार भी कोई प्ले कार्ड नहीं दिखाया, एक बार भी कोई वेल में नहीं आया। तो संकेत साफ है, सरकार सत्ता में है पर सदन को चलाना और राज्य को दिशा देना पक्ष और विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। पक्ष सुझाव दे सकता है पर प्रतिपक्ष जो सुझाव दे उन पर ज़यादा गहराई से चिंतन किया जाए, यह मेरा मानना है।

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आज का परिदृश्य चिंता और चिंतन का है। आज बाहर जाकर पता लगा लीजिए, विधायिका का आचरण देखकर लोग हास्य-प्रत्य लोग चिंतित हैं। अनुकरणीय आदर्शवादी आचरण जिनका होना चाहिए, उनका आचरण जनता की नजर में कई बार ठीक विपरीत है। प्रभावी बात तभी कहीं जा सकती है, प्रभावी बात इतिहास में तभी अंकित हो सकती है, जब वह सदन के पटल पर कहीं जाए और इतिहास में जड़ी जाती है।

व्यवधान करने की सेल्फ लाइफ अखबार की कल की सुर्खियां हो सकती है। एक सप्ताह तक असर डाल सकती है। उनका प्रभाव ज्यादा दिन तक नहीं रहता है। पर आप बहुत बड़ा शुभ अवसर खो देते हो। जब  सदन चलता नहीं है। सदन ना चलने में सबसे ज्यादा प्रसन्नता अगर किसी को होती है तो सरकार को होती है। आप सरकार से प्रश्न नहीं पूछ सकते। सरकार को कटघरे में नहीं रख सकते और नुकसान भी सरकार का ही होता है कि सरकार आपकी योग्यता का फायदा नहीं ले पाती है।

मेरा हमेशा से मानना रहा है कि भारत की सबसे बड़ी ताकत हमारी डेमोक्रेसी है। भारत को देखिए दुनिया की नजर में we are home to ⅙ of humanity। हमारी डेमोक्रेसी सबसे पुरानी है, सबसे प्रभावी है। यहां सत्ता परिवर्तन के अंदर कुछ नहीं होता। यह एक तरीका है जो तय कर देता है अन्य जगह ऐसा नहीं है दुनिया के विकसित देशों में ऐसा नहीं है। जो देश अपने आप को सबसे ज्यादा विकसित मनता है वहां भी सत्ता परिवर्तन आसानी से नहीं होता है। अपने यहां होता है।

दुनिया के लिए भारत प्रजातंत्र की दृष्टि से आदर्श वादी है क्योंकि हमारी सांस्कृतिक विरासत 5000 साल की है किसी और देश की नहीं है।

और दूसरी जो हमारी मजबूती है, वह हमारी कार्यपालिका है। हमारे अधिकारीगण किस वजह से वहां पहुंचते हैं, वह दुनिया की सबसे मुश्किल परीक्षा पास करते हैं। उनकी चयन प्रक्रिया उनका परीक्षण उनको मजबूती देता है। वह किसी भी काम को हासिल करने में कभी पीछे नहीं रहते और भारत की कार्यपालिका ने दुनिया में दिखा दिया कि यदि कार्यपालिका सही नीति दी जाती है तो नतीजा आश्चर्यजनक जनक होते हैं। भारत ने देखा है यही कारण है कि आज के दिन हर घर में आपको चूल्हे की जगह गैस कनेक्शन दिखेगा। लोगों को आशा बनी हुई है कि मेरे घर में मिलो चलकर मटके में पानी नहीं आएगा, मेरे घर में नल होगा, मेरे घर में शौचालय होगा, पढ़ाई मेरे नजदीक मिलेगी, महिलाओं की उन्नति होगी और यह किसी राजनीतिक मुद्दे की वजह से नहीं है, यह पूरे देश की प्रगति की वजह है।

मैं आपसे जानना चाहता हूं कि आपका मन में यह बात कभी नहीं आती है कि हम विकास को राजनीतिक चश्मे से नहीं देख सकते हैं और यह कहना कि किस का कालखंड में क्या हुआ है तो भारत में आज़ादी के बाद संकटमयी स्थिति के अंदर प्रगति की है। उस कालखंड में प्रगति ज्यादा है। उस कालखंड में संकट ज्यादा रहा होगा पर आज का भारत जिस स्तर पर है आप सब पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है, आपको दिशा देनी पड़ेगी।

एक छोटी सी बात ले लीजिए। सोशल मीडिया किसी भी सदस्य के बारे में सोशल मीडिया में एक ऐसी भ्रांति फैलाई जा सकती है जो एक बड़ी आग का रूप ले लेगी। इस सदन को तय करना है कि इस प्रकार की व्यवस्था पर अंकुश कैसे लगाये। सार्थकता से हमारे जीवन चलता रहे। हमारे चरित्र हनन का प्रयास न हो कैसे रोके।

सदन का मुख्य काम है वेधियक निर्माण में योगदान देना। मुझे बड़ी पीड़ा होती है और विशेषकर मुझे पीड़ा उन से होती है जिस वर्ग से मैं आता हूं, वकालत के  पेशे से. भारतीय संसद ने हाल ही में अंग्रेजों के कानून को छोड़कर तीन कानून का निर्माण किया। राज्यसभा में देश के सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ता सांसद ने एक ने भी चर्चा में भाग नहीं लिया। व्यक्तिगत रूप से मैंने उनको कहा है। यह पीड़ा का विश्व है जो लोग राय दे सकते हैं मार्गदर्शन दे सकते हैं, बता सकते हैं कि यह बदलाव होना चाहिए वह नहीं कर पाए। एक भी उनमें से निलंबित नहीं था। सदस्य को निलंबन करना सबसे बड़ी पीड़ा का कारण है। बहुत गहराई से सोचते हैं कक्ष में चर्चा करते हैं उनसे विचार विमर्श करते हैं। उनके साथ भोजन करते हैं और यही बात है कि वह कोई ऐसा भाव नहीं रखते खासतौर मेरे लिए कि आपने गलत किया। वह कहते हैं कि हम सीमाओं में बंधे हुए हैं और मैं समझता हूं यह सीमाएं। हर सदस्य राजनीतिक दल के आदेश को मानने के लिए विवश है, यह एक हकीकत है, सत्ता पक्ष हो चाहे विपक्ष हो।

राजनीतिक दलों से भी मैं आग्रह करूंगा की सदस्यगण अपनी प्रतिभा को तभी दिखा पाएंगे सार्थक बना पाएंगे जब अनेक विषयो पर आप उनको पूरी बात कहने का मौका देंगे। हो सकता है कुछ राजनीतिक मुद्दे जिन पर राजनीतिक दलों का नियंत्रण होना चाहिए वह राजनीतिक कैसे करते हैं यह विषय आसन का नहीं है। पक्ष विपक्ष का आपस में हो सकता है। आसन पर संदेह करना मैं समझता हूं कभी ठीक नहीं रहेगा। आसन पर बैठने वाला व्यक्ति दोनों तरफ देखाता है हल्की-फुल्की बातें इतनी हो जाती है कि हमें उनका दिल पर नहीं लेना चाहिए।

जब मैं राज्यसभा का सभापति बन गया था तो उससे पहले वेंकैया नायडू जी के पक्ष में खड़गे जी ने एक बात कही की बहुत अच्छे रहे आप और मेरे बारे मे कहा की आने वाला मौसम कैसा रहेगा, कितना सताएगा पता नहीं। यह बात उन्होंने एक भावना से कही थी। उसका मैं दो अर्थ ले सकता हूं। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। किसी बात को प्रकट कर किसी बात को लंबी खिंच कर, ठीक नहीं है।

मेरे बारे में भी राजस्थान में टिप्पणी हुई है। मैं उनको व्यावहारिक मानता हूं। उनकी गांठ बांध लूं और कटाक्ष करूं ठीक नहीं है। पर एक बात अवश्य है कि हर सदस्य का आचरण अनुकरणीय होना चाहिए, मर्यादित होना चाहिए। आपका नाम इतिहास में रचित है। आपके आने वाली पीढ़ियां याद रखेगी की अमृत काल में राजस्थान विधानसभा ने जो कार्य कर जो 2047 में भारत का रूप होगा उसकी नीव डाली, उसके हम सदस्य थे। आपको बताना पड़ेगा भावी पीढ़ीयो को कि हमने विधानसभा के पटल पर विधानसभा के कक्ष में क्या योगदान दिया, कौन सा ऐसा विचार हमने रख जो उस समय तो समझ में लोगों के नहीं आया पर 10 साल बाद आया। इस सुअवसर को आप कभी मत गवाइया। create हिस्ट्री!

मैं आपको बताना चाहता हूं कि डॉक्टर अंबेडकर ने जो बातें कहीं उन पर आपको ख़ास ध्यान देना चाहिए। डॉ अंबेडकर ने कहा था ‘आपको पहले भारतीय, अंतिम भारतीय और सिर्फ भारतीय होना चाहिए। भारतीयता हमारी पहचान है, भारतीय होना हमारा गर्व है।’

नेता हो प्रतिपक्ष में हो सत्तापक्ष में हो सबने इस हवन के अंदर अपनी आहुति दी है। यह हमें सोचना चाहिए डॉक्टर अंबेडकर ने एक चेतना भी करी पहली बार आग्रह किया कि हर हालत में आप भारतीय रहिए चेतना दी उन्होंने “जब तक हम, संसद में, विधायिका में  अपनी जिम्मेदारियों का एहसास नहीं करते और लोगों के कल्याण और अच्छे का ध्यान रखने का काम नहीं उठाते… मेरे मन में जरा भी संदेह नहीं है कि इस संसद का जनता द्वारा बाहरी तिरस्कार के साथ व्यवहार किया जाएगा।”

जितने आंदोलन होते हैं, लोग सड़क सड़क पर आते हैं उसका एक कारण है कि जो लोग सड़क पर चर्चा करते हैं, वह चर्चा सदन में नहीं हो रही है। यदि अगर सदन में चर्चा होगी तो व्यापक संदेश जाएगा। संविधान सभा जब बनी थी उसमें सदस्य थे पर आज का सदन समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। आपके यहां चर्चा का मतलब है, पूरे देश और राष्ट्र को संदेश जाएगा।

डॉक्टर अंबेडकर जी ने एक गंभीर चिन्ता व्यक्त की।

“ऐसा नहीं है कि भारत कभी स्वतंत्र देश नहीं था। मुद्दा यह है कि एक बार उसने अपनी स्वतंत्रता खो दी थी। क्या वह इसे दूसरी बार खो देगी?…….मुझे सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि न केवल भारत ने पहले एक बार अपनी आजादी खोई है, बल्कि उसने इसे अपने ही कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात से खो दिया है। ……क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?”
यह उन्होंने बहुत बड़ी चिंता व्यक्त की है |

मेरा आपसे आग्रह होगा हर भारतीय राष्ट्रवाद में विश्वास करते हैं। हर भारतीय की निष्ठा शत प्रतिशत है। पर कुछ लोग जो भ्रमित है, वह किधर से भी आ सकते हैं, उनकी विचारधारा को कुंठित करना इस विधानसभा का बहुत बड़ा दायित्व है और एकमत विधानसभा उनको कुंठित कर सकती है ताकि भारत की प्रगति में किसी भी तरह का कोई अवरोध नहीं आए।

संविधान सभा के सदस्य सीधे रूप से निर्वाचित नहीं थे। कोई सीधा चुनाव जीतकर नहीं आया था। जैसे आप लोग आए है, वह इनडायरेक्ट इलेक्शन था और ऐसी संख्या 292 थी। 93 लोग वह थे जो राजा महाराजाओं के प्रतिनिधि बने थे और 4 वह थे जिनमें एक राजस्थान अजमेर के थे जिनको हम कहते हैं chief commissioner of province. उन सदस्यों के नाम देखेंगे तो राजस्थान के मुख्यमंत्री उनमे से बने, केंद्र के अंदर सबसे पहले कैबिनेट मंत्री बने। उनका क्या योगदान रहा आपको बहुत तरीके से ध्यान देना चाहिए। एक बार जब आप पढ़ेंगे तो मेरे मन में कोई शंका नहीं है आप प्रेरित होंगे, आपका योगदान गुणात्मक होगा जनता को सही संदेश देने वाला होगा।

संविधान की जो मूल प्रति है अंग्रेजी और हिंदी जो हस्त लिखित है, उसको अगर आप देखेंगे जिसके लिए मैं आप सबको आमंत्रण देता हूं। मैं माननीय अध्यक्ष जी से कहूंगा कि राजस्थान विधानसभा का हर सदस्य चाहे पहली बार निर्वाचित हो या पहले से निर्वाचित हो मेरे आमंत्रण पर नए संसद भवन में मेरा अतिथिए स्वीकार करें और जितनी व्यवस्था हम कर पाएंगे जितनी जानकारी हम दे पाएंगे आपको वहां वह आपके लिए लाभदायक होगी। मैं हर सदस्य को यह भी निमंत्रण देता हूं कि वह अपने परिवार सहित आए। इसका विशेष कारण यह है कि भारतीये सांसद का जो नया भवन है देखना से ही आपको पता लगेगा कि कोविद के बाद से ढाई साल में कोई भवन नहीं बना है, भवन के अंदर बहुत कुछ हुआ है हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।

अंत में मैं एक बात कहूंगा भारत के संविधान को लोगों ने पढ़ा है पर जो भारत का संविधान उपलब्ध है वह पूर्ण नहीं है। भारत के संविधान में चलचित्र हैं। मेरा आग्रह रहेगा की राजस्थान विधानसभा भारत के उस संविधान की प्रति हर सांसद को उपलब्ध काराये। तब आपको पता लगेगा कि संविधान में जो चित्र है वह वह संविधान निर्मातावो ने हमारी 5000 साल की सांस्कृतिक विरासत की झलक दिखाइ है। सारनाथ के अशोक स्तंभ अशोक चिन्ह चित्र हैं। संविधान के पहले भाग में सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतीक जेबू बैल है, भाग 2 में वैदिक काल का गुरुकुल है और भाग 3 जो सबसे महत्वपूर्ण है मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है आम नागरिक के हितों से जुड़ा हुआ है आम नागरिक को प्रजातांत्रिक व्यवस्था की महक दिलाता है जो प्रजातांत्रिक मूल्यों को प्रबल करता है उसके उस भाग के चित्र में श्री राम सीता और लक्ष्मण भगवान  पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे है। संविधान का जो चौथा भाग है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है वह राज्य के नीति निर्देशक तत्व हैं “डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ़ स्टेट पॉलिसी” कि हमारा राज्य कैसा हो उसमें जो चित्र है कुरुक्षेत्र का चित्र है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे हैं। यह संविधान का भाग है जो अक्सर किताबों से दूर क्यों रह जाता। मुझे समझ में नहीं आता अन्य भाग देखेंगे आप गौतम बुद्ध 14 जैन तीर्थकर महावीर, सम्राट अशोक, हनुमान, हमारी जाति का तो हनुमान जी से ज्यादा जुड़ाव है, वह भी वहां पर हैं, राजा विक्रमादित्य, छत्रपति शिवाजी,  सिखों के 10 वे गुरु गोविंद सिंह जी, महान अकबर, गांधी जी, नेताजी जी सुभाष चंद्र बोस, रानी झांसी,  सब उन चित्रों में है उनको जब अब सिलसिलेवार से देखोगे तो आपका मन करेगा की उनका स्थान वहां कैसे आया संविधान सभा के सदस्यों ने कितना ध्यान दिया। भारतीय संविधान को पढ़ने वाले को अंदाजा लग जाएगा और आपको 5000 साल की संस्कृति का निचोड़ उन चलचित्रों में मिल जाएगा।

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